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गुमनाम खत ऐसा भी

                            एक गुमनाम खत ऐसा भी 
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 राहुल सुबह नाश्ते करके आफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था कि अचानक डोरबेल की आवाज सुनाई दी। राहुल ने दरवाजा खोला तो सामने वही डाकिया खड़ा था जो दो बार पहले भी उसके यहां बिना नाम वाले खत लेकर आया था। इस बार उस खत के साथ एक छोटा सा डिबबा भी आया था। राहुल ने चुपचाप हस्ताक्षर किए और खत और बक्सा लेकर अंदर चला गया। शाम को देखूंगा, सोचकर आफिस चला गया। कुछ कारणों की वजह से आफिस छ बजे ही बंद हो गया तो राहुल वापस घर लौट आया। उसकी नज़र उस बक्से पर पड़ी जो सुबह डाक में आया था। उत्सुकता वश राहुल ने उसे खोला तो उसमें एक छोटी सी बच्चों वाली गाड़ी थी। साथ में एक नोट भी लिखा था। 

"राहुल बेटा" मैं जानता हूं कि शहरों में रहने वालों को फुर्सत नहीं मिलती लेकिन इतनी भी क्या व्यस्तता कि सिर्फ दो मिनट तक भी बात करना बंद कर दिया। बात मत कर लेकिन हमारा नंबर डायल करके ही छोड़ दिया कर ताकि हमें यह तो पता चलता रहे कि हमारा बेटा वहां सही सलामत है।" एक महीने पहले तुम्हारी मां की तबीयत खराब हो गई थी। तब तुझे फोन किया तो बिजी आ रहा था। खैर छोड़ो, यह गाड़ी याद है तुम्हें।" राहुल ने उस गाड़ी को ध्यान से देखा तो उसकी सोच अठारह साल पीछे चली गई।

"क्या हुआ राहुल बेटा? गाड़ी को चलाना छोड़ चुपचाप क्यूं बैठे हो।" राहुल की मां मंजरी ने जब राहुल को गुमसुम सा बैठे देखा तो चिंतित हो कर पुछा।
मैं यह सोच रहा था कि एक दिन मैं बहुत सारे पैसे कमाऊंगा और तुम्हारे और बाबा के लिए ऐसी ही बड़ी बड़ी गाडियां खरीदूंगा। एक गाड़ी में तुम सब्जी लेने जाना दूसरी में बाबा काम पर जाया करेंगे।" यह सब याद आते ही राहुल के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने खत उठा कर आगे पढ़ने लगा।

"तुमने कहा था कि पैसे कमा कर ऐसी गाड़ियां खरीदोगे लेकिन तब हमें यह नहीं मालूम था कि इस ख्वाब को पूरा करने के चक्कर में तुम ही हमसे दूर हो जाओगे।" गाड़ियों को तो छोड़ो, तुम ही कभी वापस लौट कर नहीं आए। बीमारी की हालत में तुम्हारी मां इस गाड़ी को हाथ में लेकर दरवाजे की तरफ नज़र टिकाए बैठी रही कि कब तुम बड़ी सी गाड़ी लेकर आओगे और उसकी यह ख्वाहिश भले ही ना टूटी लेकिन उसकी सांसों की माला जरुर टूट गई।" इतना पढ़ते ही राहुल को बहुत बड़ा धक्का लगा और वो सदमे से चक्कर खा कर गिर पड़ा।

अक्सर हम इंसान तरक्की की राह पर चलते चलते इतनी दूर निकल जाते है कि पीछे छूट गए अपनों की परवाह करना या फिर परवाह जताना भी भूल जाते हैं। यही राहुल और उसके मां बाबा के साथ हुआ। राहुल उन्हें जमाने भर की खुशियां देने की चाहत में इस कदर खो गया कि उनकी खैरियत जानना भी भूल गया लेकिन अब क्या किया जा सकता था। वो मुहावरा है ना कि अब पछताए क्या होगा जब चिड़िया चुग गई खेत।" 

समाप्त 

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7 Comments

Gunjan Kamal

13-Feb-2023 11:39 AM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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अदिति झा

11-Feb-2023 12:07 PM

Nice 👌

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Varsha_Upadhyay

10-Feb-2023 08:58 PM

Nice 👍🏼

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